Friday, January 25, 2013

OBSERVATORY NAINITAL


OBSERVATORY :- It is about 4.5 km from Nainital. Situated at an altitude of (1951 MT). Observatory is basically a place of astronomical studies. Public is shown round some of the instruments during working days at afternoons. For night viewing three four days on moonlight nights are fixed and permission is needed.

The clear skies over Nainital prompted the government to setup an observatory here. The observatory has one of the most advance telescopes in India. Observatory was established at Nainital in 1955 and shifted to present location of Manora Peak in 1961. Aryabhatta Research Institute of Observational Sciences (ARIES) is an autonomous institute devoted to research and development in Astronomy & Astrophysics and Atmospheric Sciences. The Institute is funded by the Department of Science and Technology (DST), Government of India.

The primary objective of the observatory has been to develop facilities for modern astrophysical research in stellar, solar & theoretical branches of astrophysics. 

With prior permission, visitors can get access to the observatory and also experience the pleasure of viewing celestial objects through the telescope, provided the nights are clear enough. With the help of this telescope the movement of stars, planets and other heavenly bodies can be calculated to great precision.

Thursday, January 24, 2013

सुमित्रानंदन पंत उतराखंड के कीमती रत्न


सुमित्रानंदन पंत
सुमित्रानंदन पंत का जन्म उतराखंड के अल्मोड़ा जिले के कौसौनी गाँव मे २० मई  सन १९०० ई. मे हुआ था | जन्म के कुछ घंटे बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया | उनकी प्राम्भिक शिक्षा अल्मोड़ा जिले  मे  हुई  | १९१९ मे उन्होने उच्च शिक्षा के लिये म्योर सेंट्रल कॉलेज  इलाहाबाद मे प्रवेश लिया उन्ही दिनों गाँधी जी के नेतृत्व मे चल रहे असहयोग आन्दोलन से जुड़ गए और पढाई छोड़ दी | उन्होंने प्रगतिशील साहित्य के प्रचार-प्रशार के लिए रूपाम नामक पत्रिका का प्रकाशन कर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई | सन १९५० से १९५७ तक पंत जी आकाशवाणी हिंदी के परामर्शदाता रहे | उत्कृष्ट साहित्य साधना के लिए उन्हें"सोवियत" भूमि ने नेहरु पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया | सन १९७१ में भारत सरकार ने 'पदम् भूषण' की उपाधि से विभूषित किया | सन १९७७ में पंत जी का निधन हो गया | 

सुमित्रानंदन पंत की रचनाएँ
सुमित्रानंदन पंत संवेदनशील, मानवतावादी और प्रकृति प्रेमी कवि है | प्रकृति चित्रण के क्षेत्र में वे अपना सनी नहीं रखते उनकी और रचनाओ मेंवीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगान्त, युगवाणी, ग्राम्य, उतरा, स्वर्ण किरण, कला और बुढा चाँद, चिदंबरा, लोकायतन आदि प्रमुख कृतिया है |

सुमित्रानंदन पंत की भाषा शैली
सुमित्रा नन्द पंत ने अपनी रचानो के लिए साहित्यिक खडी बोली को अपनाया है | उनकी भाषा सरल स्वाभाविक एवं भावनाकुल है | उन्होंने तत्सम शब्दों की बाहुबल के साथ साथ अरबी, ग्रीक, फारसी, अंग्रेजीभाषाओ के शब्दों का भी प्रयोग किया है |
"उदहारण- ग्राम श्री कविता में इसकी झलक देखने को मिल सकती है | ग्राम श्री का अर्थ है गाँव की लक्ष्मी, गाँव की सम्पन्नता कवि इस कविता में भारतीय गाँव की प्राकृतिक सुषमा का वर्णन करता है | भारतीय गाँव में हरी-भरी लहलहाती फसले, फल-फूलो से भरे पेड़ नदी-तट की बालू आदि कवि को मुग्ध कर देती है यहाँ गंगा के रेत का मनोहारी वर्णन किया जा रहा है |
बालू के सापों से अंकित गंगा की सतरंगी रेती सुन्दर लगती संपत छाई तट पर तरबूजो के खेती; आंगुली की कंघी से बगुले कलंगी सवारते है कोई तिरते जल में सुरखाव, पुलित पर मगरोठी रहती सोई | बालू पर बने निशाने को " बालू के सांप कहकर संबोधित किया है | गंगा की रेती जो सूर्य का प्रकाश पड़ने के कारण सतरंगी बनकर चमक रही है वह बालू के सांपो से अंकित है उसके चारो और सरपट की बनी झाड़ियो और तट पर तरबूजो के खेत बड़े सुन्दर लगते है | जल में अपने एक पैर को उठा उठा कर सर खुजलाते बगुले ऐसे दिखाई पड़ते है जैसे बालो में खंघी कर रहे हो | गंगा के उस प्रवाहमान जल में कही सुर्खन तैर रहे है तो कही किनारे पर मगरोठी (एक विशेष चिड़िया) ऊँघती हुई भी दिखाई पड़ रही है |

कविता
हसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए से सोये, 
भीगी अंधियाली में निशि की
तारक स्वप्न में से खोए
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम 
जिस पर नीलम नभ आच्छादन
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन |

कवि बसंत के आगमन पर हरियाली को अपने में समेटे इस मादक मौसम और गाँव के संपूर्ण दृश्य कैसा लगता है इसका वृणन किया है की रात की भीगी अंधियारी में सुख के कारण उत्पन्न हुए आलस से युक्त हरीतिमा को धारण करने वाली फसले जैसे रात और तारो के सपनो में खोई हुई सी सो रही है और पन्ने जैसी हरित छवि वाली इन फसलो को धारण करने वाली धरती का पन्ने (मरकत) की डिब्बे जैसा है | " इस मरकत डिब्बे जैसे गाँव के ऊपर नीला आकाश ऐसे छाया है जैसे 'नीलम' का आच्छादन हो | अनुपमेय शोभा युक्त गाँव की यह स्निग्ध छटा इस बसंती मौसम में अपनी शोभा से मन को हर लेने वाली है | 
यहाँ पर कवि ने गाँव को 'मरकत डिब्बे' सा खुला कहा है | पन्ना नाम के हरे कीमती रत्न को मरकत कहा जाता है | गाँव हरा-भरा है पन्ने के रंग का है और पन्ने के सामान ही बहुमूल्य भी है डिब्बे में बहुत सी अन्य वस्तुए होती है गाँव रूपी पन्ने की डिब्बी में अनेक वस्तुए सजी है | कविता में सुन्दर प्राकृतिक चित्रण है | बसंत ऋतू में गाँव की सम्पनता चित्रित की गई है|

हिंदी साहित्य में सुमित्रा नंदन पंत का नाम बहुत ही आदर से लिया जाएगा |

Adi-Kailash (Chhota Kailash)


Adi-Kailash (Chhota Kailash)
OM PARVAT
  
Adi Kailash is an ancient holy place in the Himalayan Range, similar to Mount Kailash in Tibet. This abode of Lord Shiva ina remote area is worth to have a Darshan. Trekking to Adi Kailash in the Himalayan ranges of Kumaun region near the Indo Tibetan Border in district Pithoragarh.

Upto Gunji the route is same. One walks 14 km, first to the left of Kuti and then to the right, to reach Jollingkong (4572 m). The river Kuti and its bridge will perhaps may be under a thick blanket of snow.

Jonglingkong is called Chhota Kailas (6191 m) while its small but beautiful lake is called Parvati Tal. The reflection of the peak in the lake is really fascinating.There is a temple near the lake, which is sometimes visited by swan-like birds. 

A little distance from here are to be found the remains of a dry lake. Along the river Kuti are two passes - Lampia Dhura and Mangsa Dhura - leading to Tibet. The ITBP and SPF personnel will tell whether one can cross the Sinla pass to reach Bedang. If this is not possible one will have to return. If there is little or no snow, one should set out early in the morning to cross the pass. The route to Sinla pass is under a heavy blanket of snow. One can see the Chhota Kailas peak constantly from there.

Monday, January 21, 2013

शेरदा ‘अनपढ़’ शतशः प्रणाम!


शेरदा ‘अनपढ़’ ने अपनी दुदबोलि को भाषा के रूप में स्थापित करने में अमूल्य योगदान दिया। वे ठेठ जमीन से जुड़े कवि हैं। उनकी कविताओं में गोठों की गंध, माटी की सुगंध, प्रकृति के इन्द्रधनुषी रंग, ग्रामीण जीवन का अश्रु-हास, गरीबी का दंश, कृषि-जीवन की पटकथा के संग गाँवों के रंग-ढंग आदि एक साथ देखे जा सकते हैं। जीवन की असारता, मृत्यु-बोध, गाँव की सादगी, शहरी जीवन का दिखावा, मूल्यहीनता, नेताओं की चरित्रहीनता, आर्थिक विषमता, मानवीय मूल्यों के ह्रास आदि को उन्होंने अपनी कविता का विषय बनाया है। इन सबके बीच प्रेमानुभूति एवं सौदर्य की मधुरिमा के दर्शन भी होते हैं। उनकी कविता में सागर-सी गहराई, हिमालय-सी ऊँचाई, धरती-सी व्यापकता, चिन्तन की आध्यात्मिकता, भावों की उदात्तता तथा जीवन की जीवन्तता देखी जा सकती है। शेरदा ने जिस खसपर्जिया कुमाउनी में कविता की रचना की है, उसमें काव्यत्व के सभी गुण विद्यमान हैं।
शेरदा में गूढ़ दार्शनिक विचार को ‘कवित्व’ रूप में व्यक्त करने का ‘विट’ सहज रूप में विद्यमान है। ‘मुर्दाक् बयान’ में वे कहते हैं:-

जब तलक बैठुँल कुनैछी, बट्यावौ-बट्यावौ है गे।
पराण लै छुटण नि दी, उठाओ-उठाओ है गे।।

जीवन-मृत्यु और सुख-दुःख के बारे में न जाने कितने कवियों, दार्शनिकों ने कहा होगा, जरा शेरदा के दूल्हे और मुर्दे के रूपक में खुशी और गम के दो संश्लिश्ट बिम्बों को देखकर न हँसते बनता है और न रोते:-
एक डोलि पुजूनऊँ, एक डोलि छजूनऊँ, एक दी जगूनऊँ, एक दी निमूनऊँ।
खरीदनैई लुकुड़ लोग एक्कै दुकान बटि, क्वे कै हूँ लगनाक, क्वे कै हूँ कफनाक।
‘प्रेम’ के सुकोमल, सुमधुर, सरस एवं आह्लादकारी मनोभाव की दृष्टि से ‘को छै तु’ और ‘अन्वार’ अद्भुत कवितायें हैं। ‘को छै तु’ कविता में शेरदा ने लोकजीवन से संबद्ध एवं लोकरस से सम्पृक्त उपमानों से नारी सौन्दर्य की सृष्टि की है:-

भ्यार बै अनारै दाणि, भितेर बै स्यो छै तु ?
नौ रति बावन त्वालैकि, ओ दाबणी को छै तु ?

प्रकृति संबंधी कविताओं में-‘बसंत’, ‘मैतुड़ देश’, ‘चैमासकि ब्याव’, ‘मेरि थात’ उल्लेखनीय हैं। लोकतत्व के भाषिक संस्पर्श से एक भिन्न प्रकार का संवेदनात्मक वातावरण उत्पन्न करते बसंत को देखिये:-
छै रै बसन्त, है रै फूलों में बात, कौंई गईं दिन राँडा बौई गईं रात।
‘चैमासकि ब्याव’ में बहुरंगी एवं बहुभंगी दृश्यों से वर्षा की मादकता का उत्सव बना दिया है, मानो प्रकृति-नटी किसी विवाहोत्सव की तैयारी कर रही हो:-

सौंणि धरतिल बणै हैली नौणि जै गात , ब्यौल जा दिन देखींनई, ब्यौलि जै रात!

गाँवों से लेकर केन्द्र तक राजनीति तथा लोकतंत्र के विद्रूप को ‘सभा’ कविता में देखा जा सकता है-

जाँ बात-बात में हात मानीं
वै हैतीं कूनी ग्राम सभा…
जाँ सब कूनी और क्वे न सुणन
वै हैतीं कूनी लोक सभा!
और वोट हथियाने का क्रूर यथार्थ -
नेताज्यू बोटैकि ओट में चटणि चटै गईं।
यौ-ऊ मिलौल कै सौ गिन्ती रटै गईं।.

‘हरै गौ म्यर गौं’ कुमाऊँ के ग्रामीण जीवन का समग्र जीवन्त सांस्कृतिक इतिहास है। इसे बदलते भारतीय गाँवों का समाजशास्त्रीय अध्ययन माना जा सकता है:-

काँ गोछा रे रीति-रिवाज, रीति-रस्मो, काँ गोछा मुख मोडि़बेर।
को मुलुक दूर टाड़ बसि गोछा तुम, मै-माटि कैं छोडि़बेर।

इस कविता में लोकगाथा की तरह काव्य एवं गद्य का संश्लिष्ट रूप परस्पर गुँथा दिखाई देता है।
इतने बड़े फलक पर रचना कर शेरसिंह बिष्ट ‘अनपढ़’ ने कुमाउनी कविता के लिये एक नई जमीन तलाशी और उसे अन्य भारतीय भाषाओं के काव्य के समकक्ष खड़ा किया। सामान्य बोलचाल की अपरिष्कृत भाषा को किस तरह काव्य सौन्दर्य से मंडित किया जा सकता है, इस हुनर को शेरदा में देखा जा सकता है।
इस कालजयी कवि को शतशः प्रणाम!
  
"बख्ता तेरी बले ल्युल" 
बूब जै जवान नाती जे लूल 
बख्ता तेरी बले ल्युल 
च्येलेक की लटी, ब्वारी बुल्बुली 
बख्ता तेरी बले ल्युल 
च्येल कूना मी बाब कै चूटूल 
ब्वारी कूने मी सास को कूटूल 
भाई कूनो मी भाई को लूटूल 
और दुनि कुने रे मी ठूल रे ठूल 
जदुक च्याल उदूके चूल 
बख्ता तेरी बले ल्युल 
च्येलेक लैट, ब्वारी बुल्बुली 
बख्ता तेरी बले ल्युल 

च्याल मारणी बाब के लात 
और सास जोड़ने ब्वारी हाथ 
च्येल ब्वारी नक खिल्खिलात 
बुड़ बुडियाक पड़ो टिटाट 
बाव है गयी घर का ठूल 
बख्ता तेरी बले ल्युल 
च्येलेक लैट, ब्वारी बुल्बुली 
बख्ता तेरी बले ल्युल 
मुख मे मलाई भिदेर जहर 
ओ इजा गोनु मिले पूज को सहर 
टीक मे कपाई लाल पील 
दिल मे देखो मुसाक बिल 
चानी मे चनन और दिल मे दुल 
बख्ता तेरी बले ल्युल 
च्येलेक लैट, ब्वारी बुल्बुली 
बख्ता तेरी बले ल्युल 

मुस पेटन धान भूष 
बिराव पेटन ज्युन मुस 
मोटियेल पतव कै चूस 
मेस खे बेर मेस खुश 
कल्जुगा का भाग खुल 
बख्ता तेरी बले ल्युल 
च्येलेक लैट, ब्वारी बुल्बुली 
बख्ता तेरी बले ल्ह्यून 

झूठ कै देखि साच 
चोर देख माज्बर डरनी 
उज्याव देख अन्यार डरनी 
मुस देख बिराव डरनी 
मुसक पौथ धरु है ठूल 
बख्ता तेरी बले ल्युल 
च्येलेक लैट, ब्वारी बुल्बुली 
बख्ता तेरी बले ल्युल 

तराजू भो टूकी मे ल्हें गो 
भेसैक भो बोकी मे ल्हें गो 
तौल कस्यार दाड़ मे ल्हें गे 
ओ इजा घागेरी सुरयाव नाड़ी मे ल्हें गे 
माट है गो सुनुको मोल 
बख्ता तेरी बले ल्युल 
च्येलेक लैट, ब्वारी बुल्बुली 
बख्ता तेरी बले ल्युल 


फैशन रंग मे सौ भर ल्हें गो 
लुकुड़ आंग मे पौ भर रे गो 
राड़ने ए गे गाव मे आन्गेडी 
ओ बाज्यु आन्गेडी मेले भौजी नागेड़ी 
आय कि देखो आय देखुल 
बख्ता तेरी बले ल्युल 
च्येलेक लैट, ब्वारी बुल्बुली 
बख्ता तेरी बले ल्युल
courtesy-http://www.nainitalsamachar.in