Sunday, January 27, 2013

पाताल भुवनेश्वर गुफा


 उत्तराखण्ड की पहाड़ी वादियों के बीच बसे सीमान्त कस्बे गंगोलीहाट की पाताल भुवनेश्वर गुफा किसी आश्चर्य से कम नही है। यहां पत्थरों से बना एक. एक शिल्प तमाम रहस्यों को खुद में समेटे हुए है। मुख्य द्वार से संकरी फिसलन भरी 80 सीढियां उतरने के बाद एक ऐसी दुनिया नुमाया होती है जहां युगों युगों का इतिहास एक साथ प्रकट हो जाता है। गुफा में बने पम्थरों के ढांचे देष के आध्यात्मिक वैभव की पराकाष्ठा के विषय में सोचने को मजबूर कर देते हैं। पौराणिक महत्व पुरातात्विक साक्षों की मानें तो इस गुफा को त्रेता युग में राजा ऋतुपर्ण ने सबसे पहले देखा। द्वापर युग में पाण्डवों ने यहां चौपड़ खेला और कलयुग में जगदगुरु शकराचार्य का 822 ई के आसपास इस गुफा से साक्षात्कार हुआ तो उन्होंने यहां तांबे का एक शिवलिंग स्थापित किया। इसके बाद चन्द राजाओं ने इस गुफा के विशय मे जाना।और आज देष विदेष से षैलानी यहां आते हैं। और गुफा के स्थपत्य को देख दांतो तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाते हैं।

मान्यताएं चाहे कुछ भी हो पर एकबारगी गुफा में बनी आकृतियों को देख लेने के बाद उनसे जुड़ी मान्यताओं पर भरोसा किये बिना नहीं रहा जाता। गुफा की शुरुआत में शेषनाग के फनों की तरह उभरी संरचना पत्थरों पर नज़र आती है। मान्यता है कि धरती इसी पर टिकी है। आगे बढने पर एक छोटा सा हवन कुंड दिखाई देता है। कहा जाता है कि राजा परीक्षित को मिले श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए उनके पुत्र न्मेजय ने इसी कुण्ड में सभी नागों को जला डाला परंतु तक्षक नाम का एक नाग बच निकला जिसने बदला लेते हुए परीक्षित को मौत के घाट उतार दिया। 
हवन कुण्ड के ऊपर इसी तक्षक नाग की आकृति बनी है। आगे चलते हुए महसूस होता है कि हम किसी की हडिडयों पर चल रहे हों। सामने की दीवार पर काल भैरव की जीभ की आकृति दिखाई देती है। कुछ आगे मुड़ी गरदन वाला गरुड़ एक कुण्ड के ऊपर बैठा दिखई देता है। माना जाता है कि शिवजी ने इस कुण्ड को अपने नागों के पानी पीने के लिये बनाया था। इसकी देखरेख गरुड़ के हाथ में थी। लेकिन जब गरुड़ ने ही इस कुण्ड से पानी पीने की कोशिश की तो शिवजी ने गुस्से में उसकी गरदल मोड़ दी। कुछ आगे ऊंची दीवार पर जटानुमा सफेद संरचना है। यहीं पर एक जलकुण्ड है मान्यता है कि पाण्डवों के प्रवास के दौरान विश्वकर्मा ने उनके लिये यह कुण्ड बनवाया था। कुछ आगे दो खुले दरवाजों के अन्दर संकरा रास्ता जाता है। कहा जाता है कि ये द्वार धर्म द्वार और मोक्ष द्वार है । आगे  है आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित तांबे का शिवलिंग। माना यह भी जाता है गुफा के आंखिरी छोर पर पाण्डवों ने शिवजी के साथ चौपड़ खेला था। लौटते हुए एक स्थान पर चारों युगों के प्रतीक चार पत्थर हैं। इनमें से एक धीरे धीरे ऊपर उठ रहा है। माना जाता है कि यह कलयुग है और जब यह दीवार से टकरा जायेगा तो प्रलय हो जायेगा। गुफा की शुरुआत पर वापस लौटने पर एक मनोकामना कुण्ड है। 

मान्यता है कि इसके बीच बने छेद से धातु की कोई चीज पार करने पर मलोकामना पूरी होती है। आष्चर्य ही है कि जमीन के इतने अन्दर होने के बावजूद यहां घुटन नहीं होती शान्ति मिलती है। देवदार के घने जंगलों के बीच बसी रहस्य और रोमान्च से सराबोर पाताल भुवनेश्वर की गुफा की सैलानियों के बीच आज एक अलग पहचान है। कुछ श्रृद्धा से, कुछ रोमान्च के अनुभव के लिये, और कुछ शीतलता और शान्ति की तलाश में यहां आते हैं। गुफा के पास हरे भरे वातावरण सुन्दर होटल भी पर्यटकों के लिये बने हैं। खास बात यह है कि गंगोलीहाट में अकेली यही नहीं बल्कि दस से अधिक गुफाएं हैं जहो इतिहास की कई परतें, मान्यताओं के कई मूक दस्तावेज खुदबखुद खुल जाते हैं। आंखिर यूं ही गंगोलीहाट को गुफाओं की नगरी नहीं कहा जाता।

Saturday, January 26, 2013

Abbott Mount Cottage


Abbott Mount Cottage is located near Indo-Nepal border in the state of Uttarakhand, 165km away from Kathgodam railway station & 9km from Lohaghat. This colonial style lodge offers four rooms. The lodge is well furnished with en suite western style toilets, a kitchen where one can avail the services of our cook. The place is excellent for birding, Himalayan views and nature treks. This also serves as a base for anglers who wish to fish Mahseer at Pancheshwar, a confluence of Saryu and Mahakali rivers.
Abbott Mount 

This historic hamlet of Abbott Mount is situated at an altitude of about 6500 ft above sea level in the eastern part of the Kumaon Hills near the small town of Lohaghat in Champavat District. Abbott Mount was founded by and named after Mr. John Harold Abbott. 
An English businessman who wanted to start a hill station for the European community at the turn of the 20th century. Unlike many Indian hill stations Abbott Mount has changed little since its inception. There are only thirteen secluded cottages spread over this private hill. There is a picturesque church set amidst the forest and an old cricket pitch with an unsurpassed view of the mountains.
The period or season time to attain Abbott Mount hill station is complete year so reaching there or planning to visit the place at the particular time is not required. However, reaching the station in monsoon could be little difficult because of cold and landslide problems. Tourist might face obstructions along the way because of landslides. In winters, tourist may get snow or can entitle for ice events. As pre experts reaching Abbott Mount is best in summer season as the place remains enjoyable and decent.

Friday, January 25, 2013

OBSERVATORY NAINITAL


OBSERVATORY :- It is about 4.5 km from Nainital. Situated at an altitude of (1951 MT). Observatory is basically a place of astronomical studies. Public is shown round some of the instruments during working days at afternoons. For night viewing three four days on moonlight nights are fixed and permission is needed.

The clear skies over Nainital prompted the government to setup an observatory here. The observatory has one of the most advance telescopes in India. Observatory was established at Nainital in 1955 and shifted to present location of Manora Peak in 1961. Aryabhatta Research Institute of Observational Sciences (ARIES) is an autonomous institute devoted to research and development in Astronomy & Astrophysics and Atmospheric Sciences. The Institute is funded by the Department of Science and Technology (DST), Government of India.

The primary objective of the observatory has been to develop facilities for modern astrophysical research in stellar, solar & theoretical branches of astrophysics. 

With prior permission, visitors can get access to the observatory and also experience the pleasure of viewing celestial objects through the telescope, provided the nights are clear enough. With the help of this telescope the movement of stars, planets and other heavenly bodies can be calculated to great precision.

Thursday, January 24, 2013

सुमित्रानंदन पंत उतराखंड के कीमती रत्न


सुमित्रानंदन पंत
सुमित्रानंदन पंत का जन्म उतराखंड के अल्मोड़ा जिले के कौसौनी गाँव मे २० मई  सन १९०० ई. मे हुआ था | जन्म के कुछ घंटे बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया | उनकी प्राम्भिक शिक्षा अल्मोड़ा जिले  मे  हुई  | १९१९ मे उन्होने उच्च शिक्षा के लिये म्योर सेंट्रल कॉलेज  इलाहाबाद मे प्रवेश लिया उन्ही दिनों गाँधी जी के नेतृत्व मे चल रहे असहयोग आन्दोलन से जुड़ गए और पढाई छोड़ दी | उन्होंने प्रगतिशील साहित्य के प्रचार-प्रशार के लिए रूपाम नामक पत्रिका का प्रकाशन कर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई | सन १९५० से १९५७ तक पंत जी आकाशवाणी हिंदी के परामर्शदाता रहे | उत्कृष्ट साहित्य साधना के लिए उन्हें"सोवियत" भूमि ने नेहरु पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया | सन १९७१ में भारत सरकार ने 'पदम् भूषण' की उपाधि से विभूषित किया | सन १९७७ में पंत जी का निधन हो गया | 

सुमित्रानंदन पंत की रचनाएँ
सुमित्रानंदन पंत संवेदनशील, मानवतावादी और प्रकृति प्रेमी कवि है | प्रकृति चित्रण के क्षेत्र में वे अपना सनी नहीं रखते उनकी और रचनाओ मेंवीणा, ग्रंथि, पल्लव, गुंजन, युगान्त, युगवाणी, ग्राम्य, उतरा, स्वर्ण किरण, कला और बुढा चाँद, चिदंबरा, लोकायतन आदि प्रमुख कृतिया है |

सुमित्रानंदन पंत की भाषा शैली
सुमित्रा नन्द पंत ने अपनी रचानो के लिए साहित्यिक खडी बोली को अपनाया है | उनकी भाषा सरल स्वाभाविक एवं भावनाकुल है | उन्होंने तत्सम शब्दों की बाहुबल के साथ साथ अरबी, ग्रीक, फारसी, अंग्रेजीभाषाओ के शब्दों का भी प्रयोग किया है |
"उदहारण- ग्राम श्री कविता में इसकी झलक देखने को मिल सकती है | ग्राम श्री का अर्थ है गाँव की लक्ष्मी, गाँव की सम्पन्नता कवि इस कविता में भारतीय गाँव की प्राकृतिक सुषमा का वर्णन करता है | भारतीय गाँव में हरी-भरी लहलहाती फसले, फल-फूलो से भरे पेड़ नदी-तट की बालू आदि कवि को मुग्ध कर देती है यहाँ गंगा के रेत का मनोहारी वर्णन किया जा रहा है |
बालू के सापों से अंकित गंगा की सतरंगी रेती सुन्दर लगती संपत छाई तट पर तरबूजो के खेती; आंगुली की कंघी से बगुले कलंगी सवारते है कोई तिरते जल में सुरखाव, पुलित पर मगरोठी रहती सोई | बालू पर बने निशाने को " बालू के सांप कहकर संबोधित किया है | गंगा की रेती जो सूर्य का प्रकाश पड़ने के कारण सतरंगी बनकर चमक रही है वह बालू के सांपो से अंकित है उसके चारो और सरपट की बनी झाड़ियो और तट पर तरबूजो के खेत बड़े सुन्दर लगते है | जल में अपने एक पैर को उठा उठा कर सर खुजलाते बगुले ऐसे दिखाई पड़ते है जैसे बालो में खंघी कर रहे हो | गंगा के उस प्रवाहमान जल में कही सुर्खन तैर रहे है तो कही किनारे पर मगरोठी (एक विशेष चिड़िया) ऊँघती हुई भी दिखाई पड़ रही है |

कविता
हसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए से सोये, 
भीगी अंधियाली में निशि की
तारक स्वप्न में से खोए
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम 
जिस पर नीलम नभ आच्छादन
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन |

कवि बसंत के आगमन पर हरियाली को अपने में समेटे इस मादक मौसम और गाँव के संपूर्ण दृश्य कैसा लगता है इसका वृणन किया है की रात की भीगी अंधियारी में सुख के कारण उत्पन्न हुए आलस से युक्त हरीतिमा को धारण करने वाली फसले जैसे रात और तारो के सपनो में खोई हुई सी सो रही है और पन्ने जैसी हरित छवि वाली इन फसलो को धारण करने वाली धरती का पन्ने (मरकत) की डिब्बे जैसा है | " इस मरकत डिब्बे जैसे गाँव के ऊपर नीला आकाश ऐसे छाया है जैसे 'नीलम' का आच्छादन हो | अनुपमेय शोभा युक्त गाँव की यह स्निग्ध छटा इस बसंती मौसम में अपनी शोभा से मन को हर लेने वाली है | 
यहाँ पर कवि ने गाँव को 'मरकत डिब्बे' सा खुला कहा है | पन्ना नाम के हरे कीमती रत्न को मरकत कहा जाता है | गाँव हरा-भरा है पन्ने के रंग का है और पन्ने के सामान ही बहुमूल्य भी है डिब्बे में बहुत सी अन्य वस्तुए होती है गाँव रूपी पन्ने की डिब्बी में अनेक वस्तुए सजी है | कविता में सुन्दर प्राकृतिक चित्रण है | बसंत ऋतू में गाँव की सम्पनता चित्रित की गई है|

हिंदी साहित्य में सुमित्रा नंदन पंत का नाम बहुत ही आदर से लिया जाएगा |