Tuesday, November 06, 2012

Mukteshwar The sunrise point


Mukteshwar is a town and tourist destination in the Nainital district of Uttarakhand, India. It sits high in the Kumaon Hills at an altitude of 2286 meters (7500 feet), 51 km from Nainital, 72 km from Haldwani, and 343 km from Delhi.

Local Attractions
Mukteshwar gets its name from an 350-year-old temple to Shiva, known as Mukteshwar Dham, situated atop the highest point in the town, on the veterinary institute's campus. Close to it lie the overhanging cliffs, locally known as Chauli-ki-Jali, used for rock climbing and rappelling, with an excellent view of the valleys below. The sunrise point is at the government-run PWD guest house. One can also visit the Indian Veterinary Research Institute (IVRI). Mukteshwar is the abode of a saint — Shri Mukteshwar Maharaj ji — who lived at the Top Cottage Temple where his samadhi is. One of his disciples, Swami Sanshudhanand ji, now stays there. The whole temple complex is a Tapovan and an ideal place for meditation.

IVRI hostels and the PWD rest house were the prominent shelters for ages. Now, Kumaon Mandal Vikas Nigam (KMVN) operates a tourist rest house (can be booked from Delhi as well as on phone/wireless from other KMVN guest houses). Several other hotels, resorts, guest houses and seasonal tent/hut-based camps come up. Nice scenery can be viewed from Chaulli ki Jaali, where rocks jut out from the hill face at a bizarre angle. This is a great place to observe eagles and other feathered scavengers as they swoop down at their prey.
The IVRI laboratories (experiments on tiny rats, gold-plated books, cattle-sheds), orchards of Central Institutes of Temperate Horticulture-Regional Station, 16 mile x 14 mile wide deodar forest, 22 pristine snow-peak views, and the adventure of living among wildlife like tigers and bears are some of the major attractions of this sleepy town. The charm of visiting Mukteshwar lies in enjoying nature, listening to air gushing through deodar forests, bird watching, meditation, and seeking peace. The cleanliness, solitude and nature can bore people who like urban excitement.

History 
Until 1893 the place was known for its shrines and temple before it was selected for serum production to protect animals from cattle plague. On the recommendation of the Cattle Plague Commission, the Imperial Bacteriological Laboratory had its genesis on December 9, 1889 at Pune and relocated to Mukteshwar in 1893 to facilitate segregation and quarantine of highly contagious organisms. Initially the laboratory at Mukteshwar was completed in 1898 but destroyed by fire in 1899. It was resurrected in 1901. Then annual expenditure on research was Rs. 50,000. Later it was developed into the Indian Veterinary Research Institute (IVRI), which later moved its headquarters to Izatnagar. Still Mukteshwar serves as the hill campus of IVRI, including facilities such as an experimental goat farm.

The noted Nobel winner scientist Robert Koch visited this place on request of the government of India. The microscope used by him and other historical articles are kept in the museum maintained by IVRI. Hill carved cold room in 1900 is a place of attraction for visitors. It was made to store biological materials then.

Famous saviour of horror-stricken people from man-eating tigers and writer Jim Corbett visited Mukteshwar. He wrote of Mukteshwar in Man-Eaters of Kumaon. Corbett wrote befitting and thrilling accounst of his experiences in the jungle. 

Geography
Mukteshwar is located at 29.4722°N 79.6479°E. It has an average elevation of 2,171 metres (7,123 feet).
Mukteshwar is rich in scenic beauty, with magnificent views of the Indian Himalayas including India's second-highest peak, Nanda Devi.
Because of the hilly topography, agriculture in the area consists chiefly of potato fields and fruit orchards on terraces cut into the hillsides.
Kumaon Vani Radio Service

With the aim to create a common platform for local communities of Supi in Uttarakhand, TERI launched 'Kumaon Vani', a community radio service on March 11, 2010. Uttarakhand governor Margaret Alva inaugurated the radio station, the first in the state. The 'Kumaon Vani' aims to air programmes on environment, agriculture, culture, weather and education in the local language and with the active participation of the communities. The station covers a radius of 10 km reaching out to almost 2000 locals around Mukteshwar.

New Development
There is a 'Renewable Park' developed by TERI. The renewable park uses solar electricity for most of its electricity needs. Recently, the town has experienced some construction activity and townships have begun to mushroom in and around Mukteshwar. Many people are buying holiday homes here to escape large chaotic cities.
Transport
The nearest airport is at Pantnagar and the nearest railway head is at Kathgodam, 65 km from the town, from where vehicular transport is easily available from neighbouring towns ofBhimtal, Bhowali, and Nainital.

Shri Golu Devta Kathaa


ग्वालियर कोट चम्पावत मैं झालरॉय के पुत्र हलराय राजा राज्य करते थे. यह बहुत पहले की बात है. उनकी सात रानियाँ थी. परन्तु वह संतानहीन थे. एक बार राजा अपने सैनिकों के साथ शिकार खेलने जंगल मैं गए. शिकार खेलते खेलते वह बहुत थक गए. और विश्राम करने लगे. उन्हो़ने अपने दीवान से पानी की मांग की. पानी पीते समय सोने के गडुवे मैं उन्हें सात हाथ लम्बा सुनहरा बाल दिखाई दिया. राजा कुछ आगे बड़े तो उन्हो़ने देखा की  एक सुंदरी दो लड़ते हुए साडोँ को छुडा रही थी. राजा उसकी वीरता सौंदर्य पर मुग्ध हो गए. राजा ने सुंदरी के आगे शादी का प्रस्ताव रखा. सुंदरी कालिंका के पिता रिखेशर ने अपनी बेटी का विवाह सहर्ष स्वीकार किया.

कालांतर मैं कालिंका गर्भवती हो गयी. राजा की अन्य सातों रानियों को बहुत जलन हुई. उन्हो़ने सोचा की अब उनकी पूँछ नहीं रहेगी. राजा कालिंका को ही प्यार करेगा. अतः उन्हो़ने किसी भी प्रकार उसके गर्भ को नष्ट करने की सोची. प्रसव के दिन राजा शिकार खेलने गया था. सातों रानियों ने बहाना बनाकर कालिंका की आंखों मैं पट्टी बाँध दी. उससे रानियों ने कहा की तुम मूर्छित न हो जाओ इसलिए पट्टी बाँध रहे हैं. बच्चा होने पर फर्स पर छेद करके बच्चे को नीचे गो मैं डाल दिया ताकि बकरे बकरियों द्बारा उसे मार दिया जाय. रानी के आगे उन्हो़ने सिल बट्टा रख दिया. बच्चा जब गो मैं भी जिन्दा रहा तो रानियों ने बच्चे को सात ताले वाले बक्से मैं रख कर काली नदी मैं डाल दिया.


मां कालिंका ने जब अपने सामने सिल बट्टा देखा तो वह बहुत रोई उधर सात ताले वाले बक्शे मैं बंद बच्चा धीवर कोट जा पहुंचा धीवर के जाल मैं वह बख्शा फंस गया. धीवर ने जब बख्शा खोला तो उसने उसमें जिंदा बच्चा देखा. उसने ख़ुशी ख़ुशी बालक को अपनी पत्नी माना को सौंप दिया. इस बालक का नाम गोरिया, ग्वल्ल पड़ा माना ने .बच्चे का लालन पोषण बड़े प्यार से किया. कहा जाता है की बालक गोरिया के धींवर के वहा पहुचने पर बाँझ गाय के थनोँ से दूध की धार फूट पड़ी. बालक नए नए चमत्कार दिखाता गया. उसे अपने जन्म की भी याद आ गयी.


एक दिन गोरिया अपने का के घोडे के साथ काली गंगा के उस पार घूम रहा था. वहीँ रानी कालिंका अपनी सातों सौतों के साथ नहाने के लिए आइ हुई थीं. बालक गोरिया उन्हें देखकर अपने का के घोडे को पानी पिलाने लगा.रानियों ने कहा देखो कैसा पागल बालक है. कहीं का का निर्जीव घोड़ा भी पानी पी सकता है. गोरिया ने जबाब दिया की यदि रानी कालिंका से सिल बट्टा पैदा हो सकता है तो का का घोडा पानी क्यों नहीं पी सकता. यह बात राजा हलराय तक पहुँचते देर न लगी. राजा समझ गया की गोरिया उसी का पुत्र है. गोरिया ने भी माता कालिंका को बताया की वह उन्हीं का बेटा है. कालिंका गोरिया को पाकर बहुत प्रसन्न हुई उधर. राजा ने सातों रानियाँ को फांसी की सजा सुना दी.


राजा हलराय ने गोरिया को गद्दी सो़प दी तथा उसको राजा घोषित कर दिया और खुद सन्यास को चले गए.मृत्यु के बाद भी वह गोरिया, गोलू ग्वेल, ग्वल्ल. रत्कोट गोलू, कृष्ण अवतारी, बालाधारी, बाल गोरिया, दूधाधारी, निरंकारी. हरिया गोलू, चमन्धारी गोलू, द्वा गोलू , घुघुतिया गोलू आदि नामों से पुकारे जाते हैं. उनकी मान रानी कालिंका पंचनाम देवता की बहिन थी.
आज भी भक्तजन कागज़ मैं अर्जी लिख कर गोलू मंदिर मैं पुजारी जी को देते हैं. पुजारी लिखित पिटीशन पढ़कर गोल्ज्यू को सुनाते हैं. फिर यह अर्जी मंदिर मैं टांग दी जाती है. कई लोग सरकारी स्टांप पेपर मैं अपनी अर्जी लिखते हैं. गोलू देवता न्याय के देवता हैं. वह न्याय करते हैं. कई गलती करने वालों को वह चेटक भी लागाते हैं. जागर मैं गोलू देवता किसी के आन्ग (शरीर) मैं भी आते हैं. मन्नत पूरी होने पर लोग मंदिर मैं घंटियाँ बाधते हैं. तथा बकरे का बलिदान भी देते हैं. मंदिर मैं हर जाति के लोग शादियाँ भी सम्पन्न कराते हैं.


उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले में अल्मोड़ा नगर के समीप चितई ग्राम में स्थित यह सबसे प्रसिद्ध मन्दिर कुमाऊंवासियों के साथ साथ अन्य श्र्द्धालुओं की भी लोक आस्थाओं का केन्द्र है। चितई में स्थित गोलू देवता का यह मंदिर अपने चमत्कारों के लिए सारे विश्व में जाना जाता है। न्याय के देवता के रुप में पूजे जाने वाले गोलू देवता का यह मंदिर हजारों घंटियों से ढका है। ये घंटियाँ लोग अपनी मन्नत पूरी हो जाने के बाद यहाँ आकर चढातें हैं। कोर्ट में लंबित मुकदमों में जीत के लिए लोग यहां आकर गुहार करतें हैं और माना जाता है कि गोलू देव दूध का दूध और पानी का पानी कर देतें हैं। आज भी समाज का एक बड़ा वर्ग उनके इस न्याय को स्वीकार करता है। इस मंदिर में सारे साल कभी भी आकर पूजा की जा सकती है, देश ही नहीं विदेश से भी यहां आकर लोग मन्नत मांगते हैं तथा गोलू देवता की न्यायप्रियता को देखकर नत-मस्तक हो जातें हैं। क्योकि उनके जीवन की व्यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक, मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक सभी समस्याओं का हल गोलू देवता कर देतें हैं। मन्दिर में लोग अपनी समस्याओं को पत्र के रूप में यहां लिख जाते है और समाधान हो जाने पर गोलु देवता के मन्दिर में घन्टी चढ़ाकर अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। आम लोगों द्वारा गोलू देवता से न्याय की प्रत्याशा में लिखी गयी सैकड़ों चिट्ठीयां आप मन्दिर में टंकी हुयी देख सकते हैं। अवश्य ही ग्वैल देवता लोगों की फ़रियाद सुनते हैं तभी तो इतनी सारी घण्टियां मन्दिर परिसर में श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ाई जाती हैं।

बौरारौ पट्टी में चौड़, गुरुड़, भनारी गाँव में,
उच्चाकोट के बसोट गाँव में,
मल्ली डोटी में तड़खेत में,
पट्टी नया के मानिल में,
काली-कुमाऊँ के गोलचौड़, चम्पावत में,
पट्टी महर के कुमौड़ गाँव में,
कत्यूर में गागरगोल में, थान गाँव में,
हैड़ियागाँव(भीमताल के पास बिनायक तथा घोड़ाखाल),पट्टी छखाता नैनीताल में,
चौथान रानीबाग में,
चित्तई (अल्मोड़ा के पास) में।