अल्मोड़ा। अल्मोड़ा वह नगरी है जिससे स्वामी विवेकानंद का गहरा नाता रहा है। स्वामी विवेकानंद यहां दो बार आए और कई दिनों तक रहकर साधना की। पहली बार 1890 की यात्रा के दौरान काकड़ीघाट में स्थित पीपल के पेड़ के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था। अल्मोड़ा में वह कई दिनों तक खजांची मोहल्ला में स्व.बद्री शाह के मेहमान बनकर भी रहे। करीब 115 साल पहले स्वामी विवेकानंद जब दूसरी बार अल्मोड़ा पहुंचे तो अल्मोड़ा में उनका भव्य स्वागत हुआ। पूरे नगर को सजाया गया था और लोधिया से एक सुसज्जित घोड़े में उन्हें नगर में लाया गया और 11 मई 1897 के दिन खजांची बाजार में उन्होंने जन समूह को संबोधित किया। इस स्थान पर तब पांच हजार लोग एकत्र हो गए थे।
स्वामी विवेकानंद ने अपने संबोधन में कहा था ‘यह हमारे पूर्वजों के स्वप्न का प्रदेश है। भारत जननी श्री पार्वती की जन्म भूमि है। यह वह पवित्र स्थान है जहां भारत का प्रत्येक सच्चा धर्मपिपासु व्यक्ति अपने जीवन का अंतिम काल बिताने का इच्छुक रहता है। यह वही भूमि है जहां निवास करने की कल्पना मैं अपने बाल्यकाल से ही कर रहा हूं। मेरे मन में इस समय हिमालय में एक केंद्र स्थापित करने का विचार है और संभवत: मैं आप लोगों को भली भांति यह समझाने में समर्थ हुआ हूं कि क्यों मैंने अन्य स्थानों की तुलना में इसी स्थान को सार्वभौमिक धर्मशिक्षा के एक प्रधान केंद्र के रूप में चुना है।’
उन्होंने आगे कहा कि ‘इन पहाड़ों के साथ हमारी जाति की श्रेष्ठतम स्मृतियां जुड़ी हुई हैं। यदि धार्मिक भारत के इतिहास से हिमालय को निकाल दिया जाए तो उसका अत्यल्प ही बचा रहेगा। अतएव यहां एक केंद्र अवश्य चाहिए। यह केंद्र केवल कर्म प्रधान न होगा, बल्कि यहीं निस्तब्धता, ध्यान तथा शांति की प्रधानता होगी। मुझे आशा है कि एक न एक दिन मैं इसे स्थापित कर सकूंगा।’ उल्लेखनीय है कि 1916 में स्वामी विवेकानंद के शिष्यों स्वामी तुरियानंद और स्वामी शिवानंद ने अल्मोड़ा में ब्राइटएंड कार्नर पर एक केंद्र की स्थापना कराई। जो आज रामकृष्ण कुटीर नाम से जाना जाता है।
जान बचाने वाले फकीर को पहचान गए
अल्मोड़ा। अल्मोड़ा की इस अभिनंदन समारोह के दौरान स्वामी विवेकानंद उस फकीर को पहचान गए जिसने 1890 की हिमालय यात्रा के दौरान के करबला के निकट स्वामी जी के अचेत होने पर खीरा खिलाकर उनकी जान बचाई थी। स्वामी जी उस फकीर के पास गए और उसे दो रुपये भी दिए।
1897 में तीन माह तक अल्मोड़ा रहे स्वामी विवेकानंद
अल्मोड़ा। 1897 के इस भ्रमण के दौरान स्वामी विवेकानंद करीब तीन माह तक देवलधार और अल्मोड़ा में निवास किया। इस अंतराल में उन्होंने स्थानीय लोगों के आग्रह पर अल्मोड़ा में तीन बार विभिन्न सभागारों में भी व्याख्यान दिया। 28 जुलाई 1897 को अल्मोड़ा के तत्कालीन इंग्लिश क्लब में हुए व्याख्यान की अध्यक्षता तत्कालीन गोरखा रेजीमेंट के प्रमुख कर्नल पुली ने की। इसमें कई अंग्रेज अफसरों के अलावा लाला बद्री शाह, चिरंजीलाल शाह, ज्वाला दत्त जोशी आदि भी उपस्थित रहे। स्वामी विवेकानंद दो अगस्त 1897 में स्वामी विवेकानंद मैदान की तरफ लौट गए।