Tuesday, January 08, 2013

मकर संक्रान्ति (घुघुती)

 माघ मास 1 पैट अकसर 14 जनवरी को मकर संक्रान्ति मनायी जाती है। दान-पुण्य की महत्ता को मानने वाला आस्तिक पर्वतीय समाज पवित्र नदियों में स्नान कर ब्राह्मणों को दक्षिणा और नदी के किनारे बैठे भिक्षुकों को भीख देकर पुण्य अर्जित करता है।
माघ मास में उर्द की खिचड़ी का विशेष महत्व है। संक्रान्ति की पहली सुबह मास (उड़द) की खिचड़ी खायी जाती है और खाने से पूर्व एक हिस्सा कौवे के लिये अवश्य रखा जाता है। संक्रान्ति की शाम शगुन के निमित्त ‘बड़ा’ बनाया जाता है, उसमें भी कौवे के लिये हिस्सा रखा जाता है। कौवे को यमराज का दूत माना जाता है। श्राद्धों में पितरों के तारण के लिये बलि भाग देने की परम्परा है। यम सूर्य का पु़त्र है, इसलिये सूर्यनारायण जब उत्तरायण में प्रविष्ट होते हैं, तो सूर्य को अघ्र्य व यम को पकवान खिलाये जाते हैं- साथ ही कौवों को भी खाना खिलाया जाता है।

चन्द्रवंशी राजा कल्याणसिंह के साथ घुघुती त्योहार की दन्तकथा जुड़ी है। कल्याणसिंह की कोई सन्तान नहीं थी। उन्हें बतलाया गया कि बागनाथ के दरबार में मनौती माँगने से उन्हें अवश्य सन्तान प्राप्त होगी। उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हो गई और बालक का नाम निर्भय चन्द्र रक्खा गया। पुत्र प्राप्ति से बहुत प्रसन्न रानी ने बच्चे को बहुमूल्य हीरा-मोती की माला पहिनायी। माला पहनकर बालक अत्यधिक प्रसन्न रहता था। एक बार बालक जिद पर आ गया तो रानी ने उसे डराने के लिये उसकी माला कौवे को दे देने की धमकी दे डाली। बच्चा एक और जिद करने लगा कि कौवों को बुलाओ। रानी ने बच्चे को मनाने के लिये कौवों को बुलाना शुरू कर दिया। बच्चा तरह-तरह के पकवान और मिठाइयाँ खाता था, उसका अवशेष कौवों को भी मिल जाता था इसलिये कौवे बालक के इर्द-गिर्द घूमते रहते थे। शनैः-शनैः बालक की कौवों से दोस्ती हो गई।

घुघुती नामक राजा का मंत्री राजा के निःसंतान होने के कारण राजा के बाद राज्य का स्वामित्व पाने का स्वप्न देखा करता था, लेकिन निर्भय चन्द्र के कारण उसकी इच्छा फलीभूत न हो सकी। परिणामस्वरूप वह निर्भय चन्द्र की हत्या का षड़यंत्र रचने लगा और एक बार बालक को चुपचाप से घने जंगल ले गया। कौवों ने जब आँगन में बच्चे को नहीं देखा तो आकाश में उड़कर इधर-उधर उसे ढूँढने लगे। अकस्मात् उनकी नजर मंत्री पर पड़ी, जो बालक की हत्या की तैयारी कर रहा था। कौवों ने काँव-काँव का कोलाहल कर, बालक के गले की माला अपनी चोंच में उठा कर राजमहल के प्रांगण में डाल दी। बच्चे की टूटी माला देखकर सब आशंकित हो गये। मंत्री को बुलाया गया। पर मंत्री कहीं था ही नहीं। राजा को षड़यंत्र का आभास हो गया और उन्होंने कौवों के पीछे-पीछे सैनिक भेजे। वहाँ जाकर उन्होंने देखा कि हजारों कौवों ने मंत्री घुघुती को चोंच मार-मार कर बुरी तरह घायल किया है और बच्चा कौवों के साथ खेलने में मगन है। निर्भय चंद्र और मंत्री को लेकर सैनिक लौट आये। सारे कौवे भी आकर राजदरबार की मीनार पर बैठ गये। मंत्री को मौत की सजा हुई। उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर कौवों को खिला दिये गये। लेकिन इससे कौवों का पेट नहीं भरा। अतः निर्भय चंद्र की प्राण रक्षा के उपहारस्वरूप नाना प्रकार के पकवान बनाकर उन्हें खिलाये गये। इस घटना से प्रतिवर्ष घुघुती माला बनाकर कौवों को खिलाने की परम्परा शुरू हुई। यह संयोग ही था कि उस दिन मकर संक्रान्ति थी।


संक्रान्ति की सुबह जल्दी उठकर बच्चों को पिठ्याँ लगाकर, दिया जला कर उनके गले में घुघुती की माला पहना कर ‘काले कौवा काले’ कहने के लिये छत-आँगन या घर के दरवाजे पर खड़ा कर दिया जाता है। यह त्यौहार बच्चों का ही त्यौहार माना जाता है। बच्चे उस दिन बहुत खुश रहते हैं। अपनी माला में गछे, गेहूँ के आटे में गुड़ मिलाकर घी या तेल में पके खजूरों को घुघुती का प्रतीक मानकर चिल्ला-चिल्ला कर गाते हैं-

काले कौवा काले, घुघुती माला खाले। ले कौवा तलवार, मैं कें दिये भल-भल परिवार, ले कौवा बड़, मैं के दिये भल-भल सुनूँक घड़। ले कौवा नारिंग, मैं के दिये भल-भल सुनूँक सारिंग। ले कौवा पूरी, मैं कें दिये भल-भल सुनैंक छुरी। ले कौवा गोजो, मैं कें दिये भल-भल सुनूँक बोझो। ले कौवो ढाल, मैं कें दिये भल-सुनूँक थाल।
लड़कियाँ कहती हैं- ले कौवा फूलो, मैकें दिले भल-भल दूल्हो (पति)। और लड़के कहते हैं- ले कौवा प्वौ, मैकें दिये भल-भल ज्वैं (पत्नी)। ले कौवा मेचुलो, भोल बटि आलै त्यर गलड़ थैंचुलो।
इसी प्रकार हुड़का-डमरू इत्यादि कई चीजों के नाम लेकर तुक मिला कर कौवे को लालच देकर बुलाते हैं। यह त्योहार हमें पशु-पक्षियों को अपने भोजन का कुछ अंश उन्हें भी खिलाने का आदेश देता है।