Tuesday, February 12, 2013

कुमाऊँ के मेले


कुमाऊँ की संस्कृति यहाँ के मेलों में समाहित है । रंगीले कुमाऊँ के मेलों में ही यहाँ का सांस्कृतिक स्वरुप निखरता है । धर्म, संस्कृति और कला के व्यापक सामंजस्य के कारण इस अंचल में मनाये जाने वाले उत्सवों का स्वरुप बेहद कलात्मक होता है । छोटे-बड़े सभी पर्वों, आयोजनों और मेलों पर शिल्प की किसी न किसी विद्या का दर्शन अवश्य होता है । कुमाऊँनी भाषा में मेलों को कौतिक कहा जाता है । कुछ मेले देवताओं के सम्मान में आयोजित होते हैं तो कुछ व्यापारिक दृष्टि से अपना महत्व रखते हुए भी धार्मिक पक्ष को पुष्ट अवश्य करते है । पूरे अंचल में स्थान-स्थान पर पचास से अधिक मेले आयोजित होते हैं जिनमें यहाँ का लोक जीवन, लोक नृत्य, गीत एवं परम्पराओं की भागीदारी सुनिश्चित होती है । साथ ही यह धारणा भी पुष्टि होती है कि अन्य भागों में मेलों, उत्सवों का ताना बाना भले ही टूटा हो, यह अंचल तो आम जन की भागीदारी से मनाये जा रहे मेलों से निरन्तर समद्ध हो रहा है ।

मेला चारे जिस स्थान पर भी आयोजित हो रहा हो, उसका परिवेश कैसा भी हो, अवसर ऐतिहासिक हो, सांस्कृतिक हो, धार्मिक हो या फिर अन्य कोई उल्लास से चहकते ग्रामीणों को आज भी अपनी संस्कृति, अपने लोग, अपना रंग, अपनी उमंग, अपना परिवार इन्हीं मेलों में वापस मिलते हैं । सुदूर अंचलों में तो बरसों का बिछोह लिये लोग मिलन का अवसर मेलों में ही तलाशते हैं ।

उत्तरायणी मेला
उत्तरायणी मेला उत्तरांचल राज्य के बागेश्वर शहर में आयोजित होता है। तहसील व जनपद बागेश्वर के अन्तर्गत सरयू गोमती व सुष्प्त भागीरथी नदियों के पावन सगंम पर उत्तरायणी मेला बागेश्वर का भव्य आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन सगंम में स्नान करने से पाप कट जाते है बागेश्वर दो पर्वत शिखरों की उपत्यका में स्थित है इसके एक ओर नीलेश्वर तथा दूसरी ओर भीलेश्वर शिखर विद्यमान हैं बागेश्वर समुद्र तट से लगभग 960 मीटर की ऊचांई पर स्थित है।

उत्तरांचल राज्य के चम्पावत जनपद का प्रवेश द्वार टनकपुर प्राचीन मानसरोवर यात्रा, तथा कालिदास वर्णित अलकापुरी है। इसी क्षेत्र में मॉ पूर्णगिरि पीठ सर्वोपरि महत्व रखता है। पौराणिक साहित्य वास्तव में श्रुति एवं स्मृति का इतिहास है। यह एक प्रसंग है जो कि ऋषि-मुनियों द्वारा कण्ठस्थ कर अग्रसारित किया जाता है।

देवीधूरा मेला
समूचे पर्वतीय क्षेत्र में हिमालय की पुत्री नंदा का बड़ा सम्मान है । उत्तराखंड में भी नंदादेवी के अनेकानेक मंदिर हैं । यहाँ की अनेक नदियाँ, पर्वत श्रंखलायें, पहाड़ और नगर नंदा के नाम पर है । नंदादेवी, नंदाकोट, नंदाभनार, नंदाघूँघट, नंदाघुँटी, नंदाकिनी और नंदप्रयाग जैसे अनेक पर्वत चोटियाँ, नदियाँ तथा स्थल नंदा को प्राप्त धार्मिक महत्व को दर्शाते हैं । नंदा के सम्मान में कुमाऊँ और गढ़वाल में अनेक स्थानों पर मेले लगते हैं । भारत के सर्वोच्य शिखरों में भी नंदादेवी की शिखर श्रंखला अग्रणीय है लेकिन कुमाऊँ और गढ़वाल वासियों के लिए नंदादेवी शिखर केवल पहाड़ न होकर एक जीवन्त रिश्ता है । इस पर्वत की वासी देवी नंदा को क्षेत्र के लोग बहिन-बेटी मानते आये हैं । शायद ही किसी पहाड़ से किसी देश के वासियों का इतना जीवन्त रिश्ता हो जितना नंदादेवी से इस क्षेत्र के लोगों का है ।

नैनीताल महोत्सव
उत्तर भारत की प्रख्यात पर्यटक नगरी नैनीताल में नगर पालिका परिषद नैनीताल के द्वारा वर्ष 1952 से माह अक्टूबर में शरदोत्सव का आयोजन प्रतिवर्ष किया गया। वर्ष 1970-71 से पर्यटन विभाग द्वारा इस आयोजन को अपनी ओर से आर्थिक सहायता प्रदान की गयी। तद्दोपरान्त यह आयोजन नगर पालिका परिषद नैनीताल एवं पर्यटन विभाग के संयुक्त

The beauty of Chaukori


Chaukori is a tiny hill station in the Pithoragarh district set among the lofty peaks, of the western Himalayan Range in the Kumaon Division of Uttarakhand, India. To the north is Tibet and to the south is Terai. The Mahakali River, running along its eastern boundary, forms the Indo-Nepal international border.

Chaukori's elevation is 2010 m with a spectacular view of the snowy peaks of peaks of Nanda Devi, and Nanda Kot. It is approximately 10 km from Berinag, another little hill station.

The beauty of Chaukori lies in the fact that it is situated on an almost table top mountain, which makes it quite a windy place and is much closer to the Himalayas.

Not to mention a two storey thin machan built exclusively for the purpose of an uninterrupted view of the Himalayas. The cottages are very well maintained and cosy. There are a number of treks around.

Temples
Gangolihat, 35 km away, is an important religious centre with the Hat-Kalika temple. Also in the general area are the following temples:
Mahakali Temple of Gangolihat
Patal Bhuvaneshwar
Mostamanu temple
Nagmandir of Berinag
Ghunsera Devi Temple
Kedar temple
Nakuleshwar Temple
Kamaksha Temple
Kapileshwar Mahadev cave temple
Ulkadevi Temple
Jayanti Temple Dhwaj
Arjuneshwar Shiva temple
Kot Gari Devi