Monday, February 04, 2013

पहाड़ का हरा सोना बांज (ओक)


बांज (ओक) को पहाड़ का हरा सोना कहा जाता है। पहाड़ के पर्यावरण,खेती- बाड़ी, समाज व संस्कृति से गहरा ताल्लुक रखने वाला बांज धीरे-धीरे जंगलों से गायब होता जा रहा है। 
मध्य हिमालयी क्षेत्र में बांज की विभिन्न प्रजातियां (बांज ,तिलौंज,रियांज व खरसू आदि) 1200 मी. से लेकर 3500 मी. की ऊंचाई के मध्य स्थानीय जलवायु, मिट्टी व ढाल की दिशा के अनुरुप पायी जाती हैं। पर्यावरण को समृद्ध रखने में बांज के जंगलों की महत्वपूर्ण भूमिका है। बांज की जड़े वर्षा जल को अवशोषित करने व भूमिगत करने में मदद करती हैं जिससे जलस्रोतो में सतत प्रवाह बना रहता है। बांज की पत्तियां जमीन में गिरकर दबती सड़ती रहती हैं,इससे मिट्टी की सबसे उपरी परत में हृयूमस (प्राकृतिक खाद) का निर्माण होता रहता है।

यह परत जमीन को उर्वरक बनाने के साथ ही धीरे-धीरे जल को भूमिगत करने में योगदान देती है।बांज की लम्बी व विस्तृत क्षेत्र में फैली जडे़ मिट्टी को जकडे़ रखती हैं जिससे भू कटाव नहीं हो पाता।बांज का जंगल जैव विविधता का अतुल भण्डार होता है जहां नाना प्रकार की वनस्पतियां, झाड़ियां व फर्न की प्रजातियां पायी जाती हैं।बांज का पेड़ अपने तने व शाखाओं में लाइकिन, ऑरकिड, मॉस व फर्न जैसी वनस्पतियों को फलने फूलने का अवसर भी देता है। यही नहीं कई छोटे- छोटे जीव, कीडे़ मकोडे़ व नन्हें पौधे बांज की गिरी पत्तियों के ढेर में शरण पाते हैं। 
ग्रामीण कृषि व्यवस्था में भी बांज की अहम भूमिका है। इसकी हरी पत्तियां पशुओं के लिये पौष्टिक होती हैं।इसकी सूखी पत्तियां पशुओं के बिछावन लिये उपयोग की जाती हैं, पशुओं के मल मूत्र में सन जाने से बाद में इससे अच्छी खाद बन जाती है। ईंधन के रुप में बांज की लकडी़ सर्वोतम होती है, अन्य लकडी़ की तुलना में इससे ज्यादा ताप और ऊर्जा मिलती है। ग्रामीण काश्तकारों द्वारा बांज की लकडी़ का उपयोग खेती के काम में आने वाले विविध औजारों यथा कुदाल,दरातीं के बीन (मूंठ या सुंयाठ), हल के नसूड़े,पाटा व दन्याली के निर्माण में किया जाता है। ईंधन व चारे के लिये बांज का अधांधुंध व गलत तरीके से उपयोग करना बांज के लिये सबसे ज्यादा घातक सिद्ध हुआ है। होता यह है कि बांज की पत्तियों व उसकी शाखा को बार -बार काटते रहने के कारण पेड़ पत्तियों से विहीन हो जाता है। इससे पेड़ की विकास क्रिया रुक जाती है और अन्ततः वह ठूंठ बनकर खत्म हो जाता है। 

जंगलों में पशुओं की मुक्त चराई से भी बांज के नवजात पौधों को बहुत नुकसान पहुंचता रहा है।इसके अलावा उत्तराखंड में कई स्थानों पर चाय और फलों के बाग लगाने के लिये भी बांज वनों का सफाया किया गया।नैनीताल के भवाली,रामगढ़, नथुवाखान, मुक्तेष्वर, धारी ,धानाचूली, पहाड़पानी व भीड़ापानी तथा अल्मोडा़ के पौधार, जलना,लमगड़ा,षहरफाटक,बेड़चूला,चौबटिया,दूनागिरी, पिथौरागढ के चैकोड़ी,बेरीनाग व झलतोला, टिहरी के चम्बा, धनोल्टी, पौडी के भरसाड़ तथा चमोली के तलवाडी़,ग्वालदम व जंगलचट्टी सहित कई स्थानों में जहां आज सेब, आलू व चाय की खेती हो रही है वहां पहले बांज के घने वन थे।सरकारी कार्यालयों में लकडी़ के कोयलों की पूर्ति के लिये भी पूर्वकाल में बड़ी संख्या में बांज के पेड़ काटे गये।

उत्तराखंड में बांज के जंगलों की सबसे ज्यादा दुर्गति ब्रिटिश काल के दौरान हुई।चीड़ के वृक्षारोपण को व्यावसायिकता की दृष्टि से महत्ता दिये जाने के कारण बांज के वन सीमित क्षेत्र में ही रह गये हैं। आज जनसंख्या बहुल क्षेत्रों में बांज और इसकी विभिन्न प्रजातियो के जंगल सिमट कर रह गये हैं।आरक्षित वनों को छोड़कर बांज के जंगलों हालत अत्यन्त दयनीय है। जिससे हिमालय के पर्यावरण व ग्रामीण कृषि व्यवस्था में इसका प्रभाव पड़ पर रहा हैं। उत्तराखंड की कुछ गैर सरकारी संस्थाओं और व्यक्तियों ने बांज के जंगलों के संरक्षण व उसके विकास की दिशा में स्थानीय स्तर पर कई सार्थक प्रयास किये हैं।इससे गांव समुदायों में एक नयी चेतना आ रही है। बांज के संरक्षण व विकास के सामूहिक प्रयास हमें अभी से करने होंगे,अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब बांज एक दिन दुर्लभ वनस्पतियों की श्रेणी में शुमार हो जायेगा। 

उत्तराखंड के इस लोकगीतः “…नी काटा नी काटा झुमराली बांजा, बजांनी धुरो ठण्डो पाणी…” का आशय भी यही है कि लकदक पत्तों वाले बांज को मत काटो, इन बांज के जंगलों से हमें ठण्डा पानी मिलता है।
चन्द्रशेखर तिवारी

Kumaon Mastiff सिप्रो कुकुर


Kumaon Mastiff or Cypro Kukur ( Kumauni - सिप्रो कुकुर), is a rare breed of dog originating in India. Originally bred as a watch dog in the hills of Kumaon this dog is today a rare, even in the region of its origin.

Origin
It is said that the dogs primitive ancestors were domiciled in the Mediterranean region - the name Cypro Kukur literally means Cyprus Dog in Kumauni and is believed introduced in Kumaon by settlers where it was bred by locals as a watch dog. Although no evidence isther which suggests that the breed originated in Cyprus, except the name. Folklore suggests it was introduced by Alexander the Great's soldiers in 300 B.C. when he invaded India.
Appearance
Cypro kukur is a large dog with fairly lean, muscular, well-boned bodies. They have a large powerful head and a strong neck . They have a short, soft coat that always comes in brindle, ranging from dark to light shades. They may also have white markings. The average height of these dogs is 28 inches.
Their appearance has been described to be similar to old Great Danes.
Temperament
They are aggressive dogs and need training.
Enadangered Breed
It is estimated that only 150-200 heads of this breed exist in its country of origin  
Greater population of these dogs may be present in Europe, particularly in Italy and Finland, where it was introduced by breeders who took the breed to Europe in the late 19th century.