Saturday, February 09, 2013

जागेश्वर धाम अल्मोड़ा


भगवान शिव विश्वंभर नाथ का प्रथम ज्योतिर्लिंग देवभूमि हिमालय के जागेश्वर में स्थित है. जागेश्वर का प्राचीन मृत्युंजय मंदिर धरती पर स्थित बारह ज्योतिर्लिंगों का उद्गम स्थल है. इसके पौराणिक, ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक प्रमाण प्रचुर मात्रा में मिलते हैं. यहां का प्राकृतिक वैभव हर पर्यटक-तीर्थयात्री का मन मोह लेती है. देवों के देव महादेव यहां आज भी वृक्ष वेश में युगल रूप से मां पार्वती सहित विराजते हैं. ऐसी मान्यता लेकर हज़ारों श्रद्धालु यहां हर वर्ष अपनी मनोकामना लेकर खिंचे चले आते हैं. यहां आने वाले हर श्रद्धालु की मुराद पूरी होती है. भगवान शिव-पार्वती के युगल रूप का दर्शन यहां आने वाले श्रद्धालु नीचे से एक और ऊपर दो युगल शाखाओं में स्थित विशाल देवदारू के वृक्ष में करते हैं, जो 62.80 मीटर लंबा और 8.10 मीटर व्यास का है. उत्तराखंड के कुमाऊं एवं गढ़वाल जिले का यह इलाका सदा से देवों का निवास स्थान होने के कारण देवभूमि के नाम से जग में विख्यात है. भारत की सनातन संस्कृति में त्रय देवों में भगवान शिव को महादेव के नाम से पुकारा जाता है.

कुमाऊं क्षेत्र अपने नैसर्गिक सौंदर्य के लिए विश्व प्रसिद्ध है. इस क्षेत्र के अल्मोड़ा नगर से पूर्वोत्तर दिशा में पिथौरागढ़ मार्ग पर 36 किलोमीटर की दूरी पर देवताओं का महानगर जागेश्वर स्थित है. इस स्थान की समुद्र तल से ऊंचाई 1870 मीटर है. देवदारू के घने वृक्षों से घिरी यह घाटी एक मनोहारी तीर्थस्थल है.

श्वेताश्वर उपनिषद में शिव को उनके विशिष्ट गुणों के कारण महादेव कहा गया है. हमारे वेदों में प्रकृति तत्वों को जीवन का मूल तत्व माना गया है और अग्नि, जल एवं वायु में देवत्व की प्रतिष्ठा की गई है. वहां भी शिव को रुद्र नाम से प्रतिष्ठापित किया गया है. वैदिक काल से पूर्व भी शिव का अस्तित्व रुद्र रूप से था. शिव कालातीत देवता हैं. वह सदैव लोकमंगल के लिए गतिशील देवता के रूप में जाने जाते हैं. वह किसी विशेष समय अथवा प्रयोजन के लिए अवतार नहीं धारण करते. शिव ही एकमात्र देवता हैं, जिन्होंने सदैव मृत्यु पर विजय पाई. मृत्यु ने कभी भी शिव को पराजित नहीं किया. इसी कारण उन्हें मृत्युंजय कहा जाता है.
कुमाऊं क्षेत्र अपने नैसर्गिक सौंदर्य के लिए विश्व प्रसिद्ध है. इस क्षेत्र के अल्मोड़ा नगर से पूर्वोत्तर दिशा में पिथौरागढ़ मार्ग पर 36 किलोमीटर की दूरी पर देवताओं का महानगर जागेश्वर स्थित है. इस स्थान की समुद्र तल से ऊंचाई 1870 मीटर है. देवदारू के घने वृक्षों से घिरी यह घाटी एक मनोहारी तीर्थस्थल है. जागेश्वर में 124 मंदिरों का एक पूरा समूह है, जो अति प्राचीन है, जिसके चार-पांच मंदिरों में आज भी नित्य पूजा-अर्चना होती है. यहां स्थित शिवलिंग भगवान शिव के प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में विख्यात है. इन मंदिरों का निर्माण किसने कराया, यह तो नहीं मालूम, लेकिन इनका जीर्णोद्धार राजा शालिवाहन द्वारा अपने शासनकाल में कराया गया था.

पौराणिक काल में भारत में कौशल, मिथिला, पांचाल, मस्त्य, मगध, अंग एवं बंग नामक अनेक राज्यों का उल्लेख मिलता है. कुमाऊं उसी कौशल राज्य का एक भाग था. माधवसेन नामक सेनवंशी राजा देवों के शासनकाल में जागेश्वर आया था. चंद्र राजाओं की जागेश्वर के प्रति अटल श्रद्धा थी. देवचंद्र से लेकर बाजबहादुर चंद्र तक ने जागेश्वर की हर तरह से सेवा की. बौद्ध काल में भगवान बद्री नारायण की मूर्ति गोरीकुंड और जागेश्वर की देव मूर्तियां ब्रह्मकुंड में काफी दिनों तक पड़ी रहीं. जगतगुरु आदि शंकराचार्य ने इन मूर्तियों की पुनःस्थापना की.

चम्पावत मंदिर, शहर


बालेश्वर महादेव मंदिर
यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण चांद शासन ने करवाया था। इस मंदिर की वास्तुकला काफी सुंदर है। ऐसा माना जाता है कि बालेश्रवर मंदिर का निर्माण 10-12 ईसवीं शताब्दी में हुआ था।

नागनाथ मंदिर
इस मंदिर में की गई वास्तुकला काफी खूबसूरत है। यह कुंमाऊं के पुराने मंदिरों में से एक है।

मीठा-रीठा साहिब
यह सिक्खों के प्रमुख धार्मिक स्थानों में से एक है। यह स्थान चम्पावत से 72 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि सिक्खों के प्रथम गुरू, गुरू नानक जी यहां पर आए थे। यह गुरूद्वारा जहां पर स्थित है वहां लोदिया और रतिया नदियों का संगम होता है। गुरूद्वार परिसर पर रीठे के कई वृक्ष लगे हुए है। ऐसा माना जाता है कि गुरू के स्पर्श से रीठा मीठा हो जाता है। गुरूद्वारा के साथ में ही धीरनाथ मंदिर भी है। बैसाख पूर्णिमा के अवसर पर यहां मेले का आयोजन किया जाता है। चम्पावत टुनिया की सबसे अच्हि जगह है!

पूर्णनागिरी मंदिर
यह पवित्र मंदिर पूर्णनागिरी पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर तंकपुर से 20 किलोमीटर तथा चम्पावत से 92 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पूरे देश से काफी संख्या में भक्तगण इस मंदिर में आते हैं। इस मंदिर में सबसे अधिक भीड़ चैत्र नवरात्रों ( मार्च-अर्प्रैल) में होती है। यहां से काली नदी भी प्रवाहित होती है जिसे शारदा के नाम से जाना जाता है।

श्यामलातल
यह जगह चम्पावत से 56 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके साथ ही यह स्थान स्वामी विवेकानन्द आश्रम के लिए भी प्रसिद्ध है जो कि खूबसूरत श्यामातल झील के तट पर स्थित है। इस झील का पानी नीले रंग का है। यह झील 1.5 वर्ग किलोमीटर तक फैली हुई है। इसके अलावा यहां लगने वाला झूला मेला भी काफी प्रसिद्ध है।

पंचेश्रवर
यह स्थान नेपाल सीमा के समीप स्थित है। इस जगह पर काली और सरयू नदियां आपस में मिलती है। पंचेश्रवर भगवान शिव के मंदिर के लिए अत्यंत प्रसिद्ध है। काफी संख्या में भक्तगण यहां लगने वाले मेलों के दौरान आते हैं। और इन नदियों में डूबकी लगाते हैं।
देवीधुरा
यह जगह चम्पावत से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह खूबसूरत जगह वराही मंदिर के नाम से जानी जाती है। यहां बगवाल के अवसर पर दो समूह आपस में एक दूसरे पर पत्थर फेकते हैं। यह अनोखी परम्परा रक्षा बन्धन के अवसर की जाती है।

लोहाघाट
यह ऐतिहासिक शहर चम्पावत से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान लोहावती नदी के तट पर स्थित है। यह जगह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। इसके अलावा यह स्थान गर्मियों के दौरान यहां लगने वाले बुरास के फूलों के लिए भी प्रसिद्ध है।

अब्बोट माउंट
अब्बोट माउंट बहुत ही खूबसूरत जगह है। इस स्थान पर ब्रिटिश काल के कई बंगले मौजूद है। यह खूबसूरत जगह लोहाघाट से 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके अलावा यह जगह 2001 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।