Saturday, January 19, 2013

घंटयाली माता, जो करती हैं सीमाओं की रक्षा


1965 में हुए भारत पाकिस्तान युद्ध में पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना को परास्त करने तनोट माता की भूमिका बड़ी अहम मानी जाती है। यहां तक मान्यता है कि माता ने सैनिकों की मदद की और पाकिस्तानी सेना को पीछे हटना पड़ा। इस घटना की याद में तनोट माता मंदिर के संग्रहालय में आज भी पाकिस्तान द्वारा फेंके गये जीवित बम रखे गये हैं। 

तनोट माता की तरह ही इस क्षेत्र में घंटयाली माता की ख्याति है। घंटयाली माता ने भी सैनिकों की सहायता की थी और तनोट माता की तरह ही इनके परिसर में भी दागे गये गोले और बम फटे नहीं। यही कारण है कि भारतीय सैनिक इन मंदिरों के प्रति गहरी आस्था रखते हैं। घंटयाली माता मंदिर में सुबह शाम की पूजा भी सैनिक ही करते हैं। आस-पास के क्षेत्र में घंटयाली माता की बड़ी ख्याति है, लोग यहां अपनी मुरादें मांगने भी आते हैं। 

मान्यता है कि माता सदैव अपने मंदिर में निवास करती हैं और अपने भक्तों की पुकार सुनती हैं। घंटयाली माता की एक प्राचीन कथा है जो मंदिर की दीवार पर लिखी हुई है। कथा के अनुसार सीमावर्ती गांवों के लोगों पर कुछ लोगों ने अत्याचार करना शुरू कर दिया। गांव के एक परिवार के सभी सदस्यों को अपराधियों ने मार दिया। संयोगवश एक महिला जीवित रह गयी और गांव छोड़कर अन्य स्थान पर चली गयी। 

इस दौरान महिला गर्भवती थी और कुछ समय बाद इसने एक पुत्र को जन्म दिया। बड़ा होने पर मां ने अपने पुत्र को सारी घटना बतायी। अपने परिवार वालों पर हुए अत्याचार के बारे में जानकर लड़के ने अत्याचारियों से बदला लेने की ठान ली। यह तलवार लेकर अपने पैतृक गांव लौट आया। रास्ते में घंटयाली माता का मंदिर मिला। यहां माता ने एक छोटी बच्ची के रूप में लड़के को दर्शन दिया और पानी पिलाया। माता ने कहा कि तुम बस एक व्यक्ति को मारना बाकि सब अपने आप मर जाएंगे। 

लड़के ने कहा कि यदि ऐसा हो जाएगा तो मैं वापस लौटकर अपना सिर आपके चरणों में चढ़ा दूंगा। माता के आदेश के अनुसार लड़का गांव में पहुंचा तो देखा कि एक बारात जा रही है। उसने पीछे से एक व्यक्ति को मार दिया। इसके बाद सभी लोग आपस में उलझ गये और एक-दूसरे को मारने लगे। लड़का लौटते समय माता के मंदिर में गया और माता को पुकारने लगा। माता प्रकट नहीं हुई तब लड़का अपना सिर काटकर माता के चरणों में रखने के लिए तलवार उठा लिया। 

इसी समय माता प्रकट हुई और लड़के का हाथ पकड़ कर बोली 'मैं तो यहीं विराजमान हूं, मैं अपने भक्तों को दर्शन देकर आगे भी कृतार्थ करती रहूंगी।' इस घटना के बाद से पूरे क्षेत्र में घंटयाली माता की प्रसिद्धि फैल गयी।

मेले में खूब बिक रहा हिमालय की जंबू, गंदरायण


उच्च हिमालयी इलाकों की जंबू, गंदरायण तथा अन्य औैषधीय सामग्री की गुणवत्ता आज भी लोगों को अपनी खींच रही हैै। उत्तरायणी मेले में यह वस्तुएं खूब बिकने के लिए आती हैं। मुनस्यारी की लाजवाब राजमा और बर्फीले इलाकों में पैदा होने वाली मूली के चिप्स भी लोगों को लुभा रहे हैं। 
हिमालयी इलाकों में पैदा होने वाली कीमती जड़ी-बूटियां सदियों से परंपरागत मेलाें के जरिए मध्य हिमालय, तराई और मैदानी इलाकाें तक जाती रही हैं। पिथौरागढ के धारचूला, मुनस्यारी आदि क्षेत्रों के व्यापारी हर साल उत्तरायणी के मेले में यह वस्तुएं बेचने के लिए आते हैं। इस साल भी फड़ लगाए गए हैं। धारचूला के बोन गांव निवासी किसन बोनाल ने बताया कि जंबू की तासीर गर्म होती है। इसे दाल में डाला जाता है। गंदरायण भी बेहतरीन दाल मसाला है और पेट तथा पाचन तंत्र के लिए उपयोगी है। कुटकी बुखार, पीलिया, मधुमेह और निमोनिया में, डोलू गुम चोट में, मलेठी खांसी में, अतीस पेट दर्द में, सालम पंजा दुर्बलता में लाभ दायक होता है। उत्तरायणी मेले में गंदरायण, डोलू, मलेठी आदि दस रुपये तोला, जंबू 20 रुपये, कुटकी 30 रुपये तोला के हिसाब से बिक रहा है। इनके अलावा भोज पत्र, रतन जोत सहित कई प्रकार की जड़ी बूटियां शामिल हैं। मुनस्यारी की राजमा खाने में स्वादिष्ट होती है और जल्दी पक जाती है। राजमा 140 और 160 रुपये किलो से ऊपर बिक रही है। 

हिमालयी क्षेत्र में 10 हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर पैदा होने वाली मूली के चिप्स भी वहां आए हैं। व्यवसायियों ने बताया कि मूली के यह चिप्स बर्फ की हवा में सुखाए जाते हैं। इनकी सब्जी स्वादिष्ट और स्वास्थ्य वर्धक होती है तथा पेट की कब्ज और म्यूकस दूर करती है। व्यवसायियों का कहना है कि अनियंत्रित दोहन के कारण जड़ी-बूटियाें का प्राकृतिक उत्पादन कम होने से उपलब्धता प्रभावित हुई है। वह खेतों में उत्पादन करके बेचते हैं। इसके बावजूद इन्हें लाने ले जाने में पुलिस और वन महकमा परेशान करता है।