उच्च हिमालयी इलाकों की जंबू, गंदरायण तथा अन्य औैषधीय सामग्री की गुणवत्ता आज भी लोगों को अपनी खींच रही हैै। उत्तरायणी मेले में यह वस्तुएं खूब बिकने के लिए आती हैं। मुनस्यारी की लाजवाब राजमा और बर्फीले इलाकों में पैदा होने वाली मूली के चिप्स भी लोगों को लुभा रहे हैं।
हिमालयी इलाकों में पैदा होने वाली कीमती जड़ी-बूटियां सदियों से परंपरागत मेलाें के जरिए मध्य हिमालय, तराई और मैदानी इलाकाें तक जाती रही हैं। पिथौरागढ के धारचूला, मुनस्यारी आदि क्षेत्रों के व्यापारी हर साल उत्तरायणी के मेले में यह वस्तुएं बेचने के लिए आते हैं। इस साल भी फड़ लगाए गए हैं। धारचूला के बोन गांव निवासी किसन बोनाल ने बताया कि जंबू की तासीर गर्म होती है। इसे दाल में डाला जाता है। गंदरायण भी बेहतरीन दाल मसाला है और पेट तथा पाचन तंत्र के लिए उपयोगी है। कुटकी बुखार, पीलिया, मधुमेह और निमोनिया में, डोलू गुम चोट में, मलेठी खांसी में, अतीस पेट दर्द में, सालम पंजा दुर्बलता में लाभ दायक होता है। उत्तरायणी मेले में गंदरायण, डोलू, मलेठी आदि दस रुपये तोला, जंबू 20 रुपये, कुटकी 30 रुपये तोला के हिसाब से बिक रहा है। इनके अलावा भोज पत्र, रतन जोत सहित कई प्रकार की जड़ी बूटियां शामिल हैं। मुनस्यारी की राजमा खाने में स्वादिष्ट होती है और जल्दी पक जाती है। राजमा 140 और 160 रुपये किलो से ऊपर बिक रही है।
हिमालयी क्षेत्र में 10 हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर पैदा होने वाली मूली के चिप्स भी वहां आए हैं। व्यवसायियों ने बताया कि मूली के यह चिप्स बर्फ की हवा में सुखाए जाते हैं। इनकी सब्जी स्वादिष्ट और स्वास्थ्य वर्धक होती है तथा पेट की कब्ज और म्यूकस दूर करती है। व्यवसायियों का कहना है कि अनियंत्रित दोहन के कारण जड़ी-बूटियाें का प्राकृतिक उत्पादन कम होने से उपलब्धता प्रभावित हुई है। वह खेतों में उत्पादन करके बेचते हैं। इसके बावजूद इन्हें लाने ले जाने में पुलिस और वन महकमा परेशान करता है।
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