शेरदा ‘अनपढ़’ ने अपनी दुदबोलि को भाषा के रूप में स्थापित करने में अमूल्य योगदान दिया। वे ठेठ जमीन से जुड़े कवि हैं। उनकी कविताओं में गोठों की गंध, माटी की सुगंध, प्रकृति के इन्द्रधनुषी रंग, ग्रामीण जीवन का अश्रु-हास, गरीबी का दंश, कृषि-जीवन की पटकथा के संग गाँवों के रंग-ढंग आदि एक साथ देखे जा सकते हैं। जीवन की असारता, मृत्यु-बोध, गाँव की सादगी, शहरी जीवन का दिखावा, मूल्यहीनता, नेताओं की चरित्रहीनता, आर्थिक विषमता, मानवीय मूल्यों के ह्रास आदि को उन्होंने अपनी कविता का विषय बनाया है। इन सबके बीच प्रेमानुभूति एवं सौदर्य की मधुरिमा के दर्शन भी होते हैं। उनकी कविता में सागर-सी गहराई, हिमालय-सी ऊँचाई, धरती-सी व्यापकता, चिन्तन की आध्यात्मिकता, भावों की उदात्तता तथा जीवन की जीवन्तता देखी जा सकती है। शेरदा ने जिस खसपर्जिया कुमाउनी में कविता की रचना की है, उसमें काव्यत्व के सभी गुण विद्यमान हैं।
शेरदा में गूढ़
दार्शनिक विचार को ‘कवित्व’
रूप में व्यक्त
करने का ‘विट’
सहज रूप में
विद्यमान है। ‘मुर्दाक्
बयान’ में वे
कहते हैं:-
जब तलक बैठुँल
कुनैछी, बट्यावौ-बट्यावौ है
गे।
पराण लै छुटण
नि दी, उठाओ-उठाओ है
गे।।
जीवन-मृत्यु और सुख-दुःख के
बारे में न
जाने कितने कवियों,
दार्शनिकों ने कहा
होगा, जरा शेरदा
के दूल्हे और
मुर्दे के रूपक
में खुशी और
गम के दो
संश्लिश्ट बिम्बों को देखकर
न हँसते बनता
है और न
रोते:-
एक डोलि पुजूनऊँ,
एक डोलि छजूनऊँ,
एक दी जगूनऊँ,
एक दी निमूनऊँ।
खरीदनैई लुकुड़ लोग एक्कै
दुकान बटि, क्वे
कै हूँ लगनाक,
क्वे कै हूँ
कफनाक।
‘प्रेम’ के सुकोमल,
सुमधुर, सरस एवं
आह्लादकारी मनोभाव की दृष्टि
से ‘को छै
तु’ और ‘अन्वार’
अद्भुत कवितायें हैं। ‘को
छै तु’ कविता
में शेरदा ने
लोकजीवन से संबद्ध
एवं लोकरस से
सम्पृक्त उपमानों से नारी
सौन्दर्य की सृष्टि
की है:-
भ्यार बै अनारै
दाणि, भितेर बै
स्यो छै तु
?
नौ रति बावन
त्वालैकि, ओ दाबणी
को छै तु
?
प्रकृति संबंधी कविताओं में-‘बसंत’, ‘मैतुड़ देश’,
‘चैमासकि ब्याव’, ‘मेरि थात’
उल्लेखनीय हैं। लोकतत्व
के भाषिक संस्पर्श
से एक भिन्न
प्रकार का संवेदनात्मक
वातावरण उत्पन्न करते बसंत
को देखिये:-
छै रै बसन्त,
है रै फूलों
में बात, कौंई
गईं दिन राँडा
बौई गईं रात।
‘चैमासकि ब्याव’ में बहुरंगी
एवं बहुभंगी दृश्यों
से वर्षा की
मादकता का उत्सव
बना दिया है,
मानो प्रकृति-नटी
किसी विवाहोत्सव की
तैयारी कर रही
हो:-
सौंणि धरतिल बणै हैली
नौणि जै गात
, ब्यौल जा दिन
देखींनई, ब्यौलि जै रात!
गाँवों से लेकर
केन्द्र तक राजनीति
तथा लोकतंत्र के
विद्रूप को ‘सभा’
कविता में देखा
जा सकता है-
वै हैतीं कूनी ग्राम
सभा…
जाँ सब कूनी
और क्वे न
सुणन
वै हैतीं कूनी लोक
सभा!
और वोट हथियाने
का क्रूर यथार्थ
-
नेताज्यू बोटैकि ओट में
चटणि चटै गईं।
यौ-ऊ मिलौल
कै सौ गिन्ती
रटै गईं।.
‘हरै गौ म्यर
गौं’ कुमाऊँ के
ग्रामीण जीवन का
समग्र जीवन्त सांस्कृतिक
इतिहास है। इसे
बदलते भारतीय गाँवों
का समाजशास्त्रीय अध्ययन
माना जा सकता
है:-
काँ गोछा रे
रीति-रिवाज, रीति-रस्मो, काँ गोछा
मुख मोडि़बेर।
को मुलुक दूर टाड़
बसि गोछा तुम,
मै-माटि कैं
छोडि़बेर।
इतने बड़े फलक
पर रचना कर
शेरसिंह बिष्ट ‘अनपढ़’ ने
कुमाउनी कविता के लिये
एक नई जमीन
तलाशी और उसे
अन्य भारतीय भाषाओं
के काव्य के
समकक्ष खड़ा किया।
सामान्य बोलचाल की अपरिष्कृत
भाषा को किस
तरह काव्य सौन्दर्य
से मंडित किया
जा सकता है,
इस हुनर को
शेरदा में देखा
जा सकता है।
इस कालजयी कवि को
शतशः प्रणाम!
"बख्ता
तेरी बले ल्युल"
बूब जै जवान
नाती जे लूल
बख्ता तेरी बले
ल्युल
च्येलेक की लटी,
ब्वारी बुल्बुली
बख्ता तेरी बले
ल्युल
च्येल कूना मी
बाब कै चूटूल
ब्वारी कूने मी
सास को कूटूल
भाई कूनो मी
भाई को लूटूल
और दुनि कुने
रे मी ठूल
रे ठूल
जदुक च्याल उदूके
चूल
बख्ता तेरी बले
ल्युल
च्येलेक लैट, ब्वारी
बुल्बुली
बख्ता तेरी बले
ल्युल
च्याल मारणी बाब
के लात
और सास जोड़ने
ब्वारी हाथ
च्येल ब्वारी नक
खिल्खिलात
बुड़ बुडियाक पड़ो
टिटाट
बाव है गयी
घर का ठूल
बख्ता तेरी बले
ल्युल
च्येलेक लैट, ब्वारी
बुल्बुली
बख्ता तेरी बले
ल्युल
मुख मे मलाई
भिदेर जहर
ओ इजा गोनु
मिले पूज को
सहर
टीक मे कपाई
लाल पील
दिल मे देखो
मुसाक बिल
चानी मे चनन
और दिल मे
दुल
बख्ता तेरी बले
ल्युल
च्येलेक लैट, ब्वारी
बुल्बुली
बख्ता तेरी बले
ल्युल
मुस पेटन धान
भूष
बिराव पेटन ज्युन
मुस
मोटियेल पतव कै
चूस
मेस खे बेर
मेस खुश
कल्जुगा का भाग
खुल
बख्ता तेरी बले
ल्युल
च्येलेक लैट, ब्वारी
बुल्बुली
बख्ता तेरी बले
ल्ह्यून
झूठ कै देखि
साच
चोर देख माज्बर
डरनी
उज्याव देख अन्यार
डरनी
मुस देख बिराव
डरनी
मुसक पौथ धरु
है ठूल
बख्ता तेरी बले
ल्युल
च्येलेक लैट, ब्वारी
बुल्बुली
बख्ता तेरी बले
ल्युल
तराजू भो टूकी
मे ल्हें गो
भेसैक भो बोकी
मे ल्हें गो
तौल कस्यार दाड़
मे ल्हें गे
ओ इजा घागेरी
सुरयाव नाड़ी मे
ल्हें गे
माट है गो
सुनुको मोल
बख्ता तेरी बले
ल्युल
च्येलेक लैट, ब्वारी
बुल्बुली
बख्ता तेरी बले
ल्युल
फैशन रंग मे
सौ भर ल्हें
गो
लुकुड़ आंग मे
पौ भर रे
गो
राड़ने ए गे
गाव मे आन्गेडी
ओ बाज्यु आन्गेडी
मेले भौजी नागेड़ी
आय कि देखो
आय देखुल
बख्ता तेरी बले
ल्युल
च्येलेक लैट, ब्वारी
बुल्बुली
बख्ता तेरी बले
ल्युल
courtesy-http://www.nainitalsamachar.in
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