शैलेश मटियानी (१४ अक्तूबर १९३१-२४ अप्रैल २००१) आधुनिक हिंदी साहित्य में नई कहानी आंदोलन के दौर के एवं उससे जुड़े हुए प्रसिद्ध गद्यकार हैं। उन्होंने मुठभेड़, बोरीबली से बंबई जैसे उपन्यास, चील, अर्धांगीनी जैसी कहानियों के साथ ही अनेक निबंध और संस्मरण भी लिखे हैं। संकलित हैं।
जीवन वृत्त
उनका जन्म बाड़ेछीना गांव (जिला अलमोड़ा, उत्तराखंड (भारत)) में हुआ था। उनका मूल नाम रमेशचंद्र सिंह मटियानी था। बारह वर्ष (१९४३) की अवस्था में उनके माता-पिता का देहांत हो गया। उस समय वे पांचवीं कक्षा के छात्र थे। इसके बाद वे अपने चाचाओं के संरक्षण में रहे किंतु उनकी पढ़ाई रुक गई। उन्हें बूचड़खाने तथा जुए की नाल उघाने का काम करना पड़ा। पांच साल बाद 17 वर्ष की उम्र में उन्होंने फिर से पढ़ना शुरु किया। विकट परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण की। वे १९५१ में अल्मोड़ा से दिल्ली आ गए। यहाँ वे 'अमर कहानी' के संपादक, आचार्य ओमप्रकाश गुप्ता के यहां रहने लगे। तबतक 'अमर कहानी' और 'रंगमहल' से उनकी कहानी प्रकाशित हो चुकी थी। इसके बाद वे इलाहाबाद गए। उन्होंने मुज़फ़्फ़र नगर में भी काम किया। दिल्ली आकर कुछ समय रहने के बाद वे बंबई चले गए। फिर पांच-छह वर्षों तक उन्हें कई कठिन अनुभवों से गुजरना पड़ा। १९५६ में श्रीकृष्ण पुरी हाउस में काम मिला जहाँ वे अगले साढ़े तीन साल तक रहे और अपना लेखन जारी रखा। बंबई से फिर अल्मोड़ा और दिल्ली होते हुए वे इलाहाबाद आ गए और कई वर्षों तक वहीं रहे। 1992 में छोटे पुत्र की मृत्यु के बाद उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया। जीवन के अंतिम वर्षों में वे हल्द्वानी आ गए। विक्षिप्तता की स्थिति में उनकी मृत्यु दिल्ली के शहादरा अस्पताल में हुई।
रचना कर्म
१९५० से ही उन्होंने कविताएं और कहानियां लिखनी शुरू कर दी थी। शुरु में वे रमेश मटियानी 'शैलेश' नाम से लिखते थे। उनकी आरंभिक कहानियां 'रंगमहल' और 'अमर कहानी' पत्रिका में प्रकाशित हुई। उन्होंने 'अमर कहानी' के लिए 'शक्ति ही जीवन है' (१९५१) और 'दोराहा' (१९५१) नामक लघु उपन्यास भी लिखा। उनका पहला कहानी संग्रह 'मेरी तैंतीस कहानियां'१९६१ में प्रकाशित हुआ। उनकी कहानियों में 'डब्बू मलंग', 'रहमतुल्ला', 'पोस्टमैन', 'प्यास और पत्थर', 'दो दुखों का एक सुख' (1966), 'चील', 'अर्द्धांगिनी', ' जुलूस', 'महाभोज', 'भविष्य', और 'मिट्टी' आदि विशेष उल्लेखनीय है। कहानी के साथ ही उन्होंने कई प्रसिद्ध उपन्यास भी लिखा। उनके कई निबंध संग्रह एवं संस्मरण भी प्रकाशित हुए। उन्होंने 'विकल्प' और 'जनपक्ष' नामक दो पत्रिकाएँ निकाली। उनके पत्र 'लेखक और संवेदना'(१९८३) में संकलित हैं।
कहानी संग्रह
'दो दुखों का एक सुख'(१९६६)
'नाच जमूरे नाच',
'हारा हुआ',
'जंगल में मंगल'(१९७५),
'महाभोज'(१९७५),
'चील' (१९७६),
'प्यास
पत्थर'(१९८२),
'बर्फ की चट्टानें'(१९९०)
'सुहागिनी तथा अन्य कहानियां'(१९६७),
'पाप मुक्ति तथा अन्य कहानियां'(१९७३),
'माता तथा अन्य कहानियां'(१९९३),
'अतीत तथा अन्य कहानियां',
'भविष्य तथा अन्य कहानियां',
'अहिंसा तथा अन्य कहानियां',
'भेंड़े और गड़ेरिए'
उपन्यास
'हौलदार'(१९६१),
'चिट्ठी रसेन'(१९६१),
'मुख सरोवर के हंस',
'एक मूठ सरसों'(१९६२),
'बेला हुई अबेर'(१९६२),
'गोपुली गफूरन'(१९६२),
'नागवल्लरी', 'आकाश कितना अनंत है'
'बोरीबली से बोरीबंदर',
'भागे हुए लोग',
'मुठभेड़'(१९९३),
'चंद औरतों का शहर'(१९९२)
'किस्सा नर्मदा बेन गंगू बाई',
'सावित्री',
'छोटे-छोटे पक्षी',
'बावन नदियों का संगम',
'बर्फ गिर चुकने के बाद',
'कबूतरखाना'(१९६०),
'माया सरोवर' (१९८७)
'रामकली* '
निबंध और संस्मरण
'मुख्य धारा का सवाल' ,
'कागज की नाव'(१९९१),
'राष्ट्रभाषा का सवाल' ,
'यदा कदा',
'लेखक की हैसियत से' ,
'किसके राम कैसे राम'( १९९९),
'जनता और साहित्य' (१९७६),
'यथा प्रसंग' ,
'कभी-कभार'(१९९३) ,
'राष्ट्रीयता की चुनौतियां'(१९९७)
'किसे पता है राष्ट्रीय शर्म का मतलब'(१९९५)
पुरस्कार
१९९२ में कुमाऊं विश्वविद्यालय ने डी० लिट० की मानद उपाधि से सम्मानित किया।
1984 में मुठभेड़ उपन्यास के लिए फणीश्वरनाथ रेणु पुरस्कार प्रदान किया गया।
उत्तर प्रदेश सरकार का संस्थागत सम्मान,
शारदा सम्मान
देवरिया केडिया सम्मान
साधना सम्मान
लोहिया सम्मान
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